मैं जल्दी में निकलती हूँ... Main Jaldi Men Nikalti Hun...

 

 मैं जल्दी में निकलती हूँ...

रोज़ सुबह घर से,

आधे रास्ते में याद आता है

सिलेंडर नीचे से बंद किया की नहीं

उलझन में पड़ जाती हूँ ।

कहीं गीजर खुला तो नहीं रह गया

कितनी ही जल्दी उठूं और तेज़ी से निपटाऊं काम।

मैं जल्दी में निकलती हूँ...

ऑफ़िस पहुँचने में देर हो जाती है

गुस्साई हँसी के साथ बैठती हूँ अपनी सीट पर,

नाख़ूनों में फँसे आटे को निकालते हुए।

मैं जल्दी में निकलती हूँ...

काम करती हूँ पूरी लगन से।

पूछना नहीं भूलतीं बच्चों का हाल

सास की दवाई के बारे में

ससुर के स्वास्थ्य का हाल

मेरे पास नहीं होता वक़्त

मैं जल्दी-जल्दी निपटाती हूँ काम,

ताकि समय से काम ख़त्म करके घर के लिए निकल सकूं।

मैं जल्दी में निकलती हूँ...

दिमाग़ में होती है सामान की लिस्ट

जो लेते हुए जाना है घर

दवाइयाँ, दूध, फल, राशन

ऑफ़िस से निकलने को होती ही हैं कि

तय हो जाती है कोई मीटिंग।

मैं जल्दी में निकलती हूँ...

बच्चों का प्रेम जल्दी आने की

रुलाई बन फूटती है वाशरूम में

मुँह धोकर, लेकर गहरी साँस

शामिल होती हूँ मीटिंग में।

नज़र लगातार होती है घड़ी पर

और दिमाग में होती है बच्चों की गुस्से वाली सूरत।

मैं जल्दी में निकलती हूँ...

साइलेंट मोड में पड़े फ़ोन पर

आती रहती हैं ढेर सारी कॉल्स

दिल भारी करके ध्यान लगाती हूँ मीटिंग में।

घर पहुँचती हूँ सामान से लदी-फदी

देर होने के संकोच के साथ,

शिकायतों का अंबार खड़ा मिलता है घर पर।

मैं जल्दी में निकलती हूँ...

जल्दी-जल्दी फैले हुए घर को समेटती  हूँ,सबकी ज़रूरत का सामान देती हूँ

करती हूँ  डैमेज़ कंट्रोल

मन घबराता है कि कैसे बताऊं घर पर टूर पर जाने की बात।

मैं जल्दी में निकलती हूँ...

कैसे मनाऊं सबको कि नहीं जा पाऊंगी इस बार

कितनी बार कहूंगी घर की समस्या की बात,

मैं सुबह ढेर सारा काम करके आती हूँ घर से कि शाम को आराम मिलेगा।

रात को ढेर सारा काम करती हूँ सोने से पहले,

कि सुबह जल्दी न हो।

मैं जल्दी में निकलती हूँ...

ऑफ़िस में तेज़ी से काम करती हूँ कि घर समय पर पहुँची

घर पर तेज़ी से काम करती हूँ कि ऑफ़िस समय से पहुँचु

हर जगह सिर्फ़ काम को जल्दी से निपटाने की जल्दी में

एक रोज़ मुस्कुरा देती हूँ आईने में झाँकते सफ़ेद बालों को देख।

मैं जल्दी में निकलती हूँ...

किसी मशीन में तब्दील हो चुकी हूँ 

और तब घर वाले  कहते हैं क्या करती हो ,जो ड्रामा करती हो।

जीना शुरू कर देती हूँ,थोड़ा सा अपने लिए भी

और तब मन लड़खड़ाने लगता है।

✍️

मिथिलेश दहायत (जान्हवी)

शिक्षा- बी.एस.सी (बायोटेक्नोलॉजी),पीजीडीसीए

पति- विनय (कुणाल सिंह दहिया)

ग्राम पोस्ट-धौरहरा, तहसील-अमरपाटन 

जिला-मैहर (म.प्र.)

🙏🙏

👨‍👩‍👦✍️📚📖

Comments

Popular posts from this blog

दहियों का राजस्थान से मध्यप्रदेश तक का सफर

दहिया समाज महासंघ मध्यप्रदेश

क्षत्रिय दहिया राजवंश में कई सरनेमों का प्रचलन - ॐ