दहियों का राजस्थान से मध्यप्रदेश तक का सफर
*।।इतिहास के पन्नों पर एक नजर ।।*
"*दहियों का राजस्थान से मध्यप्रदेश तक का सफर *"
दाहिया वंश और दहियावटी का इतिहास-:
नेंनसी की ख्यात के अनुसार दहिया राजवंश-
‘’मारवाङ मे सबसे ज्यादा शासन करने का श्रेय दहिया राजपूतो को जाता है। और ‘’महाराजा राणा चच्चदेव सिंह दहिया जी का जन्म 04 मार्च 967,को परबतसरगढ़ नागौर में हुआ था। और हर वर्ष 04 मार्च को जयंती मनाई जाती है ।
नेंनसी की ख्यात के अनुसार दहिया राजवंश-
‘’मारवाङ मे सबसे ज्यादा शासन करने का श्रेय दहिया राजपूतो को जाता है। और ‘’महाराजा राणा चच्चदेव सिंह दहिया जी का जन्म 04 मार्च 967,को परबतसरगढ़ नागौर में हुआ था। और हर वर्ष 04 मार्च को जयंती मनाई जाती है ।
‘’ नागौर मे किन्सरिया गांव स्थित कैवाय माता ( कुल देवी ) मंदिर मे मिले शिलालेख पर लिखा है
"दधिचिक वंश दहियक गढ़पति"
यानि इस राजस्थान की धरती पर दहिया वंश का ही ज्यादा गढ़ो पर अधिकार रहा है।इसलिए तो दहियो को गढ़पति कहते है।लेकिन ज्यादा समय तक इतिहास नही लिखा जाने के कारण इनका ज्यादा वर्णन नही मिलता है।लेकिन गढ़पति, राजा, रावत, राणा आदि नामो से दहिया वंशजो को उपाधि (संबोधन ) बराबर मिलती रही।गढ़पति की उपाधि से दहिया राजपूतो को नवाजा गया है।जो अपने आप मे अपनी महत्ता को दर्शाता है। दहिया राजपूत दधीचि ऋषि की संतान है।जिन्होंने अपनी हड्डी इन्द्र को दान मे दी थी, जिससे इन्द्र का छिना हुआ राज्य वापिस मिला था।यानि दहिया उनकी संतान है जो अपने आप मे अद्भुत और अनूठे है।इतिहास नही लिखा जाने के कारण दहिया राजपूतो की गोत्रो का ज्यादा वर्णन भी नही मिलता है।वैसे दहिया राजपूतो की खापें अर्थात् शाखाएं भी सीमित है।लेकिन दहिया राजपूतो का साम्राज्य और शासन काफी विस्तृत रहा है।
*🚩जय माँ कैवाय🚩*
*🚩जय महाराजा राणा चच्चदेव सिंह दहिया🚩*
*🚩जय महाराजा राणा चच्चदेव सिंह दहिया🚩*
*क्षत्रिय दहिया राजवंश जो कि ऋषि वंश की 12 शाखाओं में से प्रमुख दधिचिक वंश दहिया समाज है ,जो कि भारतवर्ष के सम्पूर्ण राज्यों में निवास रत है,क्षेत्रीय अनुसार कई सरनेमों का प्रचलन है क्रमानुसार : दहिया,दहियावत,दहियक(राजस्थान ),(दहिया जाट ,हरियाणा,पंजाब),दाहिया,दहायत(मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,उत्तरप्रदेश ) दहैत,(अन्य राज्यों में ) आदि।*
दहिया राजपूतो के गौरव को दर्शाती एक प्राचीन किवन्दती प्रचलित है कि-"चार मे सियो, जात मे दहिया।
रण मे भोमिया,कटै न अटकै।।"
अर्थात् चारे मे सियो (स्थानीय भाषा मे एक घास का नाम), जाति मे दहिया, रण अर्थात् लडाई मे भोमिया कही भी कभी भी नही अटकते है या पीछे नही खिचकते है। बडू ठिकाने के भादवा गाँव(परबतसर) मे उदय दहिया कार वि.सं.1087 का प्राचीन दहियो के शिलालेख व वि.सं.1122 के दो गोवर्धन स्तम्भ , दधीचिक विक्रम दहिया(किन्सरिया) का मृत्यु स्मारक लेख वि.सं.1310, संतोषी दहिया का मृत्यु स्मारक लेख, वि.सं.1838, ईस्वी सन् 1781,भूडवा गांव तथा ठाकुर मानसिंह दहिया ठिकाना - रियां(नागौर) संवत् 1719 का स्मारक लेख, इनके साथ चार ठाकुरानियाँ का अग्नि स्नान करने का स्मारक लेख प्रकाश मे आए है।नैणसी की ख्यात के अनुसार मध्य काल मे दहिया राजपूतो को प्रथम श्रेणी का दर्जा प्राप्त था।साथ ही यही स्पष्ट है कि 36 राजवंशों मे दहिया वंश भी एक प्रभावशाली राजवंश है।
‘’दहियावटी का इतिहास –‘’
संवत् 1212 मे भडियाद परबतसर के राणा वाराह दहिया अपने दल-बल सहित द्वारकाधीश की तीर्थ यात्रा पर निकले।बीच रास्ते मे राणा वाराह दहिया ने अपने दल-बल के साथ जालौर मे पडाव डाला।राणा वाराह के साथ उनकी तीनो रानियाँ पहली रानी छगन कुँवर कच्छावाह(नेतल)की,दूसरी रानी सतरंगा हाडी रानी(कोटा ) की और तीसरी रानी परमा दे चौहान खिवलगढ़ की भी थी।(इन रानियों का उल्लेख राव समेलाजी की बहियों से लिया गया है)।उस समय जालौर किले अर्थात् जाबलिपुर मे परमार वंशीय राजा कुन्तपाल परमार का शासन था।जब राजा कुन्तपाल परमार की सुदंर कन्या राजकुमारी अहंकार दे इच्छित वर पाने के लिए भगवान की आराधना कर रही थी, उसी समय उनकी दावदियो(प्राचीन काल मे राजघरानो मे काम करने वाली दासीयाँ)ने पानी भरते समय राणा वाराह दहिया का ठाठ बाठ देखकर राजकुमारी अहंकार दे को राणा वाराह दहिया के बारे मे बताया।राजकुमारी राणा वाराह दहिया को देखने को आतुर हो गयी तथा तत्काल ही राजकुमारी अहंकार दे ने राणा वाराह दहिया का बखान सुनकर अपने माता पिता से राणा वाराह दहिया से शादी करने की इच्छा जताई।तब राजा कुन्तपाल परमार ने अपनी राजकुमारी कन्या अहंकार दे की इच्छानुसार राजा वाराह दहिया से बडे धूमधाम से उसका विवाह कराया।
राजा कुन्तपाल परमार ने अपनी राजकुमारी कन्या अहंकार दे का विवाह राणा वाराह दहिया से करवा कर अपने जमाई राणा वाराह दहिया को दवेदा(सांथु),चुरा व मोक तीन गांव दहेज मे दिए।कुछ समय पश्चात् माह आषाढ सूद 14
शुक्रवार के शुभ दिन अहंकार दे की कोख से राणा वाराह दहिया को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।जन्म रोहिणी नक्षत्र मे होने से उस बालक का नाम रोहिदास रखा गया।पुत्र बधाई मे राणा वाराह दहिया ने गांव दवेदा(सांथु )पालीवाल ब्राह्मण को एवं मोक गांव कनोरिया ब्राह्मण को दान मे दिया तथा स्वयं राणा वाराह दहिया ने चुरा गाँव में नये सिरे से अपना निवास किया।इसके कुछ समय पश्चात् राणा वाराह दहिया ने अपने पुत्र के नाम से चुरा गांव मे रोहिला तालाब खुदवाकर उस पर पक्की पाल बंधवाई।पक्की पाल के बावजूद रोहिला तालाब मे पानी नही ठहरने का कारण राणा वाराह दहिया ने पंडित श्री बलदेव से पूछा।तब पंडित श्री बलदेव ने राणा वाराह दहिया को अपने स्वयं के पुत्र की बलि चढाने का सुझाव दिया।तब पंडित श्री बलदेव के बताए अनुसार राणा वाराह दहिया ने अपनी पत्नी अहंकार दे से सलाह मशविरा कर उस तालाब मे हवन कर गाजे बाजे के साथ राणा वाराह दहिया ने भारी और विचलित मन से अपने अपने आप को ढाढ़स बंधाते हुए अपने पुत्र की बलि चढ़ाई।
राणा वाराह दहिया द्वारा अपने पुत्र की बलि चढाने के बाद चूरा गांव के उस रोहिला तालाब मे पानी ठहरने लगा।(आज भी उस स्थान पर देवली व शिलालेख मौजूद है)उस दिन के बाद राणा वाराह दहिया ने चुरा गाँव को संकल्प कर हमेशा के लिए छोड़कर वापस अपने गाँव भडियाद परबतसर जाने से पहले राणा वाराह दहिया अपने ससुर राजा कुन्तपाल परमार को मुजरो देने के लिए जालौर गए।तब राजा कुन्तपाल परमार ने अपने जँवाई राणा वाराह दहिया को फरमाया कि
"आपरो घोडो दिन उगता व आत्मता जितरी भूमि मातै फिरैला उतरी आपरी जागीर वेला।"अर्थात् आपका घोड़ा दिन उगने से लेकर अस्त होने तक जितनी भूमि पार करेगा उतनी आपकी जागीर या रियासत होगी।तब राणा वाराह दहिया अपने घोड़े पर सवार होकर निकल पडते है।इस दरम्यान राणा वाराह दहिया जालौर के पास के जालौर अंचल के 64 खेडे अर्थात् गांव को दिन उगने से लेकर अस्त होने तक अपने घोडे से पार कर लेते है।यह सभी गांव राजा कुन्तपाल परमार अपने वादे के मुताबिक राणा वाराह दहिया को जागीर के रूप मे दे देते है।ये खेडे या 64
गांव ही आगे चल कर दहियावटी कहलायी।जो आज भी दहियावटी के नाम से सुप्रसिद्ध है।इन 64
खेडो पर राणा वाराह दहिया से लेकर उसकी सातवी पीढ़ी के शासक राजा मोताजी तक एकछत्र एक ही शासको द्वारा शासन किया गया।राजा मोताजी दहिया ने भी 64 खेडो अर्थात् परांगणो पर शासन किया।राजा मोताजी दहिया के 12 रानियाँ थी। जिनसे मोताजी दहिया को 24
पुत्रों की प्राप्ति हुई।राजा मोताजी दहिया के बाद इन खेडो अर्थात् परांगणो को राजा मोताजी दहिया के 24
पुत्रों मे बाटा गया।
गढ़ बावतरा मे दहियो का गढ़ होने से तथा यहा कैवाय माता मंदिर होने के कारण इसे गढ़ बावतरा के नाम से जाना जाता है।
यह सभी आधुनिक समय मे भी दहियावटी के नाम से जाने जाते हैं।अन्तिम दाहिया शासक विजयराव से नाडोल (मारवाड़) के चौहान शासक ने सांचोर विजय कर लिया था। अजमेर जिले में सावर और घटियाली तथा मारवाड़ के हरसौर में दाहियों का शासन था|राज्यों के विलय के समय सिरोही (राजस्थान) राज्य के केर का ठिकाना तथा
ग्वालियर राज्य में कनवास का ठिकाना दहिया राजवंश का था तथा जालौर (राजस्थान) जिले में 48 गाँव, जो दहियावाटी कहलाते हैं, यह भू-भाग दाहियों का था।
ग्वालियर राज्य में कनवास का ठिकाना दहिया राजवंश का था तथा जालौर (राजस्थान) जिले में 48 गाँव, जो दहियावाटी कहलाते हैं, यह भू-भाग दाहियों का था।
‘’ठाकुर बहादुरसिंह बीदासर
ने लिखा है कि पहले दहिया राजवंश वाले
पंजाब में सतलज नदी पर थे। ऐसा माना जाता है कि उस समय ये गणराज्य के
रूप में थे। वहाँ से ये सतलज नदी के पश्चिम में
भी फैले। यह माना जाता है कि सिकन्दर के
आक्रमण के समय ये वहीं थे। वहाँ इन्होंने एक
किला बनवाया, जिसका नाम शाहिल था। जिसके कारण इनकी एक शाखा “शाहिल’ कहलाई। मानते
हैं कि सिकन्दर के
समय में ये द्राहिक व दाभि
नाम से प्रसिद्ध थे, फिर
वहाँ से ये दक्षिण में
गए, जैसे मालवगण, अर्जुनायनगण और
यौधेयगण आदि सिकन्दर के
समय के पश्चात् पंजाब
से दक्षिण में
आए थे।
दहिया राजवंश का पुराना निवास नासिक त्रिबंक के पास में बहने वाली गोदावरी नदी के निकट थालनेरगढ़ था। मुहणोत नैणसी ने दहिया राजवंश की वंशावली दी है- विमलराज, सिवर था), चूहड़ मंडलीक, गुणरंग मंडलीक, देवराज-राणा, भरहराणा, रोहराणा, कीरतसिंह राणा। (वि.सं. 1056 वैशाख सुदि 3 ई. 999) के किनसरिया गाँव से मिले राणा चच के लेख में कीरतसिंह राणा का नाम मेघनाद दिया है।शिलालेख और वंशावली में इसके पुत्र का नाम वैरसिंह राणा दिया है। उसकी पत्नी दूदा से चच्च उत्पन्न हुआ। चच्च चौहान राजा सिंहराज के पुत्र दुर्लभराज का सामंत था। ऊपर वर्णित शिलालेख में अंकित तिथि को चच्च ने किनसरिया ग्राम में भवानी का मन्दिर बनवाया। (ए.इ.जि. 12 पृ. 59-61) चच्च का पुत्र उद्धरण, पर्वतसर और मारोठ का स्वामी हुआ। उसके आगे 17 नाम और दिए हैं। (नैणसी की ख्यात, पृ. 29)दूसरा शिलालेख मारोठ के मंगलाणी ग्राम में वि.सं. 1272 (ई. 1215) जेठ बदि 11 का है। उस वंश के महामंडलेश्वर कदुवराज के पुत्र पदमसिंह के बेटे महाराज पुत्र जयन्त का है। उस समय रणथम्भौर का राजा चौहान बाल्हणदेव था। (ए.इ.जि.41 पृ. 87) |राणा चच्चदेव सिंह दाहिया के पुत्र उद्धरण के दो पुत्र टारपिंड राणा और विल्हण । विल्हण बड़ा वीर और प्रभावशाली था। यह मारोठ का स्वामी हुआ। परबतसर के टारपिंड का पुत्र जगन्धर तथा उसका दुर्जनसाल और माली, राणा की बजाय रावत कहलाया तथा मारोठ के विल्हण के वंशज राणा कहलाने लगे। परबतसर के मालो का पुत्र रावल कीर्ति और उसका रावत मांडो हुआ।किनसरिया मन्दिर के पास के स्मारक स्तम्भ पर लेख है कि वि.सं. 1300 (ई. 1243) जेष्ठ सुदि 13 सोमवार के दिन दहिया राणा करतसिंह का पुत्र राणा विक्रम रानी नाइल देवी सहित स्वर्ग को गया। उस राणा के पुत्र जगधर ने माता-पिता के निमित यह स्मारक बनवाया |मारवाड़ में जयमल दहिया की पत्नी उछरंगदे अपने पति से नाराज होकर खेड़ के राव आस्थान राठौड़ के पास चली गई थी। उसे आस्थान ने अपनी रानी बना लिया था। उसके साथ उसका पुत्र, जो जयमल दहिया से उत्पन्न हुआ था, वह भी था। उसका पालन-पोषण खेड़ में ही राठौड़ों के संरक्षण में हुआ। जब शत्रु ने राव आस्थान को मारा तब इसी लड़के ने आस्थान की मौत का बदला लिया। तबसे वह राठौड़ माना जाने लगा तथा राठौड़ों की तेरह साख मानी जाने लगी। वह लड़का राठौड़ों का तिलक माना गया। (बांकीदास की ख्यात)नैणवा-बूंदी इलाके में दहियों का राज्य था। वहाँ का शासक भीम दहिया था, जिसका “वंश भास्कर में वर्णन दिया है। उसका पोता बल्लन बड़ा योद्धा था। वह बूंदी में हाड़ा राज्य के संस्थापक देवाजी से युद्ध करते समय मारा गया था।
जालौर का किला दहियों ने बनवाया था।
दहिया राजवंश का पुराना निवास नासिक त्रिबंक के पास में बहने वाली गोदावरी नदी के निकट थालनेरगढ़ था। मुहणोत नैणसी ने दहिया राजवंश की वंशावली दी है- विमलराज, सिवर था), चूहड़ मंडलीक, गुणरंग मंडलीक, देवराज-राणा, भरहराणा, रोहराणा, कीरतसिंह राणा। (वि.सं. 1056 वैशाख सुदि 3 ई. 999) के किनसरिया गाँव से मिले राणा चच के लेख में कीरतसिंह राणा का नाम मेघनाद दिया है।शिलालेख और वंशावली में इसके पुत्र का नाम वैरसिंह राणा दिया है। उसकी पत्नी दूदा से चच्च उत्पन्न हुआ। चच्च चौहान राजा सिंहराज के पुत्र दुर्लभराज का सामंत था। ऊपर वर्णित शिलालेख में अंकित तिथि को चच्च ने किनसरिया ग्राम में भवानी का मन्दिर बनवाया। (ए.इ.जि. 12 पृ. 59-61) चच्च का पुत्र उद्धरण, पर्वतसर और मारोठ का स्वामी हुआ। उसके आगे 17 नाम और दिए हैं। (नैणसी की ख्यात, पृ. 29)दूसरा शिलालेख मारोठ के मंगलाणी ग्राम में वि.सं. 1272 (ई. 1215) जेठ बदि 11 का है। उस वंश के महामंडलेश्वर कदुवराज के पुत्र पदमसिंह के बेटे महाराज पुत्र जयन्त का है। उस समय रणथम्भौर का राजा चौहान बाल्हणदेव था। (ए.इ.जि.41 पृ. 87) |राणा चच्चदेव सिंह दाहिया के पुत्र उद्धरण के दो पुत्र टारपिंड राणा और विल्हण । विल्हण बड़ा वीर और प्रभावशाली था। यह मारोठ का स्वामी हुआ। परबतसर के टारपिंड का पुत्र जगन्धर तथा उसका दुर्जनसाल और माली, राणा की बजाय रावत कहलाया तथा मारोठ के विल्हण के वंशज राणा कहलाने लगे। परबतसर के मालो का पुत्र रावल कीर्ति और उसका रावत मांडो हुआ।किनसरिया मन्दिर के पास के स्मारक स्तम्भ पर लेख है कि वि.सं. 1300 (ई. 1243) जेष्ठ सुदि 13 सोमवार के दिन दहिया राणा करतसिंह का पुत्र राणा विक्रम रानी नाइल देवी सहित स्वर्ग को गया। उस राणा के पुत्र जगधर ने माता-पिता के निमित यह स्मारक बनवाया |मारवाड़ में जयमल दहिया की पत्नी उछरंगदे अपने पति से नाराज होकर खेड़ के राव आस्थान राठौड़ के पास चली गई थी। उसे आस्थान ने अपनी रानी बना लिया था। उसके साथ उसका पुत्र, जो जयमल दहिया से उत्पन्न हुआ था, वह भी था। उसका पालन-पोषण खेड़ में ही राठौड़ों के संरक्षण में हुआ। जब शत्रु ने राव आस्थान को मारा तब इसी लड़के ने आस्थान की मौत का बदला लिया। तबसे वह राठौड़ माना जाने लगा तथा राठौड़ों की तेरह साख मानी जाने लगी। वह लड़का राठौड़ों का तिलक माना गया। (बांकीदास की ख्यात)नैणवा-बूंदी इलाके में दहियों का राज्य था। वहाँ का शासक भीम दहिया था, जिसका “वंश भास्कर में वर्णन दिया है। उसका पोता बल्लन बड़ा योद्धा था। वह बूंदी में हाड़ा राज्य के संस्थापक देवाजी से युद्ध करते समय मारा गया था।
जालौर का किला दहियों ने बनवाया था।
राजपूत वंशावली
पेज नंबर-123 के अनुसार- नागौर जिले के परबतसर से चार मील की दूरी पर किनसरिया गाँव है ,जहाँ अरावली पर्वत शृंखला है, जिसके सबसे उच्च शिखर पर माँ भवानी कैवाय
माता का भव्य मंदिर है । मंदिर के सभामंडप में वि.सं.1056
बैसाख सुदी अक्षय तृतीया, रविवार का शिलालेख है । इससे यह प्रमाणित होता है कि यह वंश दधीचीक कि संतान
है । यहां का शासक था, जो कैवाय माता का अनन्य भक्त व शक्ति का
पुजारी था । राणा चच्चदेव सिंह दाहिया के बाद कृमशः यशपुष्ट,कीर्तिसि और विक्रम सिंह दहिया यहाँ के शासक हुए । मंदिर का दूसरा शिलालेख सती
स्मारक है । जो ज्येष्ठ सुदी त्रयोदसी,सोमवार वि.सं.1300
सन 1243 का है । जिसमे कीर्ति सिंह के पुत्र दधीचीक
विक्रम सिंह दाहिया कि मृत्यु पर उसकी रानी नीलदेवी के सती होने का उल्लेख है ।यह
स्मारक विक्रम सिंह दाहिया के पुत्र जगधर
ने स्थापित करवाया था । चच्चदेव राजा के छोटे पुत्र विल्हण ने मारोठ पर अपना अलग
राज्य स्थापित किया और यहाँ से चार मील दूर गाँव देपाड़ा में अपना निवास स्थान
बनाया । देपाड़ा में उसका दुर्ग और तालाब आज तक विद्यमान है ।महाराजा विल्हण दाहिया
इस वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था,जो आज भी यहाँ कि लोक गाथाओं के स्त्रोत हैं
।उसकी घोड़ी तेजां जिस पर चढ़कर वह अपने राज्य कि देखभाल किया करता था । सारे
राजस्थान में प्रसिद्ध थी ।आज भी यहाँ विवाह
के समय दूल्हे कि सवारी जब घर से निकलती है तो महिलायें ( तेजां ये मारोठ री) लोक गीत गाकर वर को विदा करती हैं । विल्हण
के वंशजों का मारोठ पर लगभग 300 वर्षों तक राज्य बना रहा और तेरहवीं शताब्दी
में यह नष्ट हो गया ।
जालौर में वीरमदेव
चौहान के पूर्व में दाहियों का एक दुर्ग बना हुआ है । किले पर जाते समय रास्तें
में चार पोलें आती हैं। जिसमे पहली पोल दाहियों कि होना प्रमाणित होती हैं । जालोर
किले के ग्राम बावतरा में भी एक दुर्ग के भग्नावशेष पड़ें हैं । इसे भी जालोर दाहिया शासकों ने बनवाया था ।
बावतरा ग्राम से 6 मील दक्षिण पश्चिम में भुण्डवा ग्राम हैं
जहाँ पर एक प्राचीन मंदिर हैं । इसमें एक प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध है। इससे ज्ञात
होता हैं कि चौथी शताब्दी के आस-पास जालोर पर परमारों का राज्य था । यहाँ के
भांडू जी परमार ने भुण्डवा ग्राम बसाया। वि.सं. 1322 में बावतरा के बूहड़ जी दाहिया ने परमारों से
भुण्डवा छीन लिया तथा धीरे-धीरे उन्होंने ने 48 गाँवों पर अपना स्वतंत्र शासन स्थापित कर लिया । तभी से यह क्षेत्र दहियावटी
कहलाता हैं । बूहड़ जी दाहिया के वंशज सत्ता जी दाहिया यवनों से जूझते हुए न्योछावर
हुए थे । उनका स्मारक भुण्डवा ग्राम में बना हुआ हैं । जिस पर वि.सं.
1838 का शिलालेख खुदा हैं ।दहिया राजवंश
से जालौर का यह किला आबू के परमारों ने
छीन लिया था। पृथ्वीराज चौहान
द्वितीय की रानी अजयादेवी दहियाणी ने जांगलू को
समृद्धिशाली बनाया। बाद
में दहियों से
सांखला (पंवार) रायसी ने जांगलू को
छीन लिया। यह षड्यन्त्र रायसी
तथा दहियों के
पुरोहित की मिलीभगत से
सफल हुआ। पहले सांचोर भी, जो
मारवाड़ में जालौर जिले में है- दहियों का
था। और ये भी कुछ इतिहासकारों के द्वारा ये बताया
गया है कि
कुछ दाहियों का मध्यप्रदेश में आगमन पृथ्वीराज चौहान कि सेना के सेनाधिपति खेतसिंह 'जूदेव' के साथ हुआ है।दहिया एक क्षत्रिय जाति है। दाहिया शब्द, दहिया मूल शब्द का तद्भव है, दाहिया समाज की कई शाखाएं राजस्थान के आलावा हरियाणा,पंजाब में प्रमुखतः पायी जाती हैं,जो मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ ,उत्तरप्रदेश में भी निवासरत है । और जहाँ जैसी आर्थिक स्थिति रही उसके आधार पर समाज का वर्गों में परिवर्तन हुआ ।वर्तमान में मध्यप्रदेश के सम्पूर्ण जिलों में इनका उल्लेख बहुतायत मिलता है। ‘'साथियों ये सामाजिक व ऐतिहासिक जानकारी कई इतिहासकारों के द्वारा लिखी गयी किताबों का संक्षिप्ति मात्र है । लेकिन हमने जो भी जानकारी जुटाई है ये ऐतिहासिक लिखे पन्नों के संकलन के साक्ष्यों के आधार पर पूर्ण रूप से सत्य है । जिनमे से- (1) दाहिया राजवंश-ठाकुर बहादुरसिंह बीदासर (2) क्षत्रिय राजवंश -देवीसिंह मंडावा (3) राजपूत वंशावली पेज नं.123 आदि।
कुछ दाहियों का मध्यप्रदेश में आगमन पृथ्वीराज चौहान कि सेना के सेनाधिपति खेतसिंह 'जूदेव' के साथ हुआ है।दहिया एक क्षत्रिय जाति है। दाहिया शब्द, दहिया मूल शब्द का तद्भव है, दाहिया समाज की कई शाखाएं राजस्थान के आलावा हरियाणा,पंजाब में प्रमुखतः पायी जाती हैं,जो मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ ,उत्तरप्रदेश में भी निवासरत है । और जहाँ जैसी आर्थिक स्थिति रही उसके आधार पर समाज का वर्गों में परिवर्तन हुआ ।वर्तमान में मध्यप्रदेश के सम्पूर्ण जिलों में इनका उल्लेख बहुतायत मिलता है। ‘'साथियों ये सामाजिक व ऐतिहासिक जानकारी कई इतिहासकारों के द्वारा लिखी गयी किताबों का संक्षिप्ति मात्र है । लेकिन हमने जो भी जानकारी जुटाई है ये ऐतिहासिक लिखे पन्नों के संकलन के साक्ष्यों के आधार पर पूर्ण रूप से सत्य है । जिनमे से- (1) दाहिया राजवंश-ठाकुर बहादुरसिंह बीदासर (2) क्षत्रिय राजवंश -देवीसिंह मंडावा (3) राजपूत वंशावली पेज नं.123 आदि।
॥॥*बड़ों से पैर छुवाना अनुचित है *॥॥
‘’हमारे समाज में परंपरा व
रीतिरिवाजों के नाम पर गलत आचरण हो रहा है,परंपरा के नाम पर जब दामाद अपनी ससुराल आता है तो उसके सास-ससुर और वो भी सदस्य जो उसकी पत्नी से उम्र में या नाते में
बड़े हों वे सभी दामाद के पैर छूते हैं ।जबकि होना यह चाहिए कि सास-ससुर जो कि माता-पिता सामान होते हैं उनके पैर दामाद छुए ।अपने से उम्र या
नाते बड़े लोंगो से पैर छुवाना उनका अपमान करना होता है।परम्परा व रीतिरिवाजों के नाम पर यह गलत
आचरण ठीक नहीं, यहाँ तक जब भांजा अपनी
ननिहाल आता है ।मामा -मामी भांजे के पैर छूते हैं
चाहे मामा उम्र में उसकी माँ से बड़ा क्यों न हो ।बहन का बेटा अपने बेटे के बराबर
होता है ।बेटे के पैर छूना गलत आचरण है ।संस्कार कभी नहीं हो सकते, हमेशा छोटों को बड़ों के पैर छूने चाहिए ।अपनों से बड़ों से
चरण स्पर्श करवाना में दुनियाँ में कहीं नहीं बताया गया है । अगर ऐसा हो रहा है तो
संस्कार, परंपरा,रीतिरिवाजों के नाम पर तो यह सामाजिक शर्म का विषय है ।और यह संस्कार कदापि नहीं हो सकता
।‘’
अनुरोध -: ‘’आने वाली नई पीढ़ी में बदलाव लायें, उनके समस्त दस्तावेजों जैसे -:जन्म प्रमाण पत्र,अंकसूची,आधार कार्ड, वोटर कार्ड ,पैन कार्ड ,और जमीनी दस्तावेज आदि । में चाहे लड़का हो या लड़की बिना भेदभाव के साथ उनके नाम को सही कराएं बीच के शब्द कुमार / प्रसाद कि जगह सिंह लिखे आदि ।‘’
~विनय सिंह दहिया (कुणाल) ग्राम पोस्ट -धौरहरा तहसील अमरपाटन
जिला-सतना (म.प्र.)
9713682999
*🚩जय माँ कैवाय🚩*
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*क्षत्रिय दहिया राजवंश जो कि ऋषि वंश की 12 शाखाओं में से प्रमुख दधिचिक वंश दहिया समाज है ,जो कि भारतवर्ष के सम्पूर्ण राज्यों में निवास रत है,क्षेत्रीय अनुसार कई सरनेमों का प्रचलन है क्रमानुसार : दहिया,दहियावत,दहियक(राजस्थान ),(दहिया जाट ,हरियाणा,पंजाब),दाहिया,दहायत(मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,उत्तरप्रदेश ) ,दहात, दहैत ,दाहत (अन्य राज्यों में ) आदि।*