अगर प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालय बन्द हो गए तो,सबसे बड़ी कीमत कौन चुकाएगा ?


शिक्षा, शिक्षार्थी, शिक्षक
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अगर प्राथमिक एवं माध्यमिक ,विद्यालय बंद हो गए तो सबसे बड़ी कीमत कौन चुकाएगा,
न वह बच्चा जो प्राइवेट अंग्रेज़ी मीडियम स्कूल में पढ़ता है।
न वह परिवार जिसके पास ट्यूशन, कोचिंग और ऑनलाइन संसाधन हैं।
सबसे पहले शिक्षा से वंचित वही बच्चा होगा
जो समाज की आखिरी पंक्ति में खड़ा होकर पहली बार स्कूल तक पहुँचा था।

वह जिसकी पीढ़ी में पहली बार किसी ने किताब छुई थी।
वह जो गरीबी से लड़कर स्कूल तक आया था।

लेकिन अब स्कूल ही बंद किया जा रहा है।

शिक्षा हमारे विकास का पहला और सबसे ज़रूरी कदम होना चाहिए।
हमने अपने जनप्रतिनिधियों को , सांसद और विधायक को सदन में इसलिए भेजा था
कि वे शिक्षा, स्वास्थ्य और समान अवसर की गारंटी दें।
लेकिन हुआ इसका उल्टा।
सरकारी स्कूलों की छत से पानी टपकता रहा।
हर विषय के लिए शिक्षक नहीं मिले।
जरूरी सुविधाएं नहीं दी गईं।
और फिर कहा गया — "बच्चे कम हैं",
इसलिए स्कूल बंद कर दो।
लेकिन किसी ने ये नहीं सोचा कि बच्चे कम क्यों हुए।
जब स्कूलों की हालत खराब हो,
जब शिक्षकों की भर्ती बंद हो,
जब शौचालय में पानी, बिजली, पुस्तकालय कुछ न हो,
तो माता-पिता अपने बच्चों को वहाँ क्यों भेजेंगे?

सरकार ने स्कूलों को बेहतर करने के बजाय छोड़ दिया,
फिर कहा — "स्कूल में पढ़ने कोई आता नहीं"।

यह तो जैसे खेत न जोतकर कहना हुआ — "फसल नहीं हुई, खेत बेकार है"।
आज हालात यह हैं —
गर्मी की छुट्टियों के बाद जैसे ही शिक्षक स्कूल पहुँचे,
बच्चे भी आए। लेकिन तभी आदेश आया — "वोटर लिस्ट सत्यापन करो"।
फिर चुनाव की ट्रेनिंग, फिर कोई सर्वे।
शिक्षक कभी BLO बनाए जाते हैं,
कभी जनगणना कर्मी, कभी डाटा एंट्री ऑपरेटर।
कक्षा खाली रह जाती है।
फिर कहा जाता है — "बच्चे कम हैं, स्कूल बंद कर दो"।
क्या यह सब संयोग है? नहीं।
यह एक सोची-समझी नीति है।
शिक्षा को व्यापार बना दो।
सरकारी स्कूलों को बदनाम करो।
निजीकरण को बढ़ावा दो।
ताकि गरीब का बच्चा शिक्षा से दूर रहे।
वह सिर्फ मजदूरी करे, सवाल न करे।
और शिक्षा सिर्फ कुछ चुने हुए समूहों तक सीमित रखी जाए।

यह लोकतंत्र के लिए घातक है।
अगर प्राथमिक विद्यालय बंद होते हैं,
तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।

गरीब, दलित, आदिवासी और मजदूर वर्ग के बच्चे शिक्षा से बाहर हो जाएंगे।
 बच्चों का ड्रॉपआउट बढ़ेगा।
सामाजिक असमानता और जातीय भेदभाव गहरे होंगे।
संविधान के अनुच्छेद 21A का उल्लंघन होगा।
और लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर हो जाएगी।
अब यह ज़रूरी है कि हम समाधान की ओर बढ़ें।
हर पंचायत में एक सशक्त मॉडल सरकारी स्कूल हो।
हर विषय के लिए योग्य शिक्षक हों।
स्कूलों में बिजली, पानी, शौचालय और पुस्तकालय की व्यवस्था हो।
शिक्षकों को सिर्फ शिक्षा से जुड़े कार्यों में लगाया जाए।
शिक्षा को व्यापार नहीं, हर बच्चे का अधिकार माना जाए।
और सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने के लिए जवाबदेही और बजट तय हो।
अब सवाल पूछें, चुप न रहें।
अगर आज आपने सरकारी स्कूलों के लिए आवाज़ नहीं उठाई,
तो कल आपके बच्चे का भविष्य भी संकट में पड़ सकता है।
सरकारी स्कूल सिर्फ गरीब का सहारा नहीं हैं,
ये भारत के लोकतंत्र की नींव हैं।
जब अंतिम पंक्ति का बच्चा स्कूल जाएगा,

पढ़ेगा भारत ...
तभी तो आंगे बढ़ेगा भारत ..✍️📚📖🎯
                शिक्षक
 श्रीअशोक दहायत जी 
रहिकवारा,नागौद, जिला सतना (मध्यप्रदेश)

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