फादर्स डे ( पिताजी दिवस ) पर विशेष...
लोग अक्सर पिता जी को अक्सर गलत ठहराते हैं, कि वो ग़ुस्से वाले स्वभाव के है, अकड़ू है, लेकिन वो हमेशा बच्चों के प्रगति व मार्गदर्शन का प्रमुख रास्ता होते हैं। वो हमेशा बच्चों के अच्छे परिवरिश में अपना रहन-सहन भूल जाते हैं। और बच्चों के उत्कृष्ट भविष्य के लिए हमेशा रात्रि के समय एकांत में सोचते रहते है। वैसे भी हमारा बचपन गांव के देहात में गरीबी में बीता , कुछ पल जो आज भी याद है और हमेशा याद रहेंगे। हमारे पास नए कपड़े नही होते थे, ठंडी में मेरे गांव के समीप मेला लगता था तो पिता जी नए कपड़े लाने के लिए दो या चार रात दिन मेंले में गन्ना खरीदकर बेंचा करते हैं। और प्राथमिक स्कूल गांव में ही थी लेकिन 6th की पढ़ाई के लिए ग्राम मौहट पैदल ही नदी पार कर जाना होता था। क्योंकि साइकिल नही थी , वो क्या बोलते थे कि जो पैदल स्कूल जाता है उसे ज्यादा भूंख लगती है और हमेशा स्वास्थ्य रहता है।
और 9th और 10 th की पढ़ाई के लिए तो ग्राम करही में 8 किलोमीटर पैदल जाना होता था तो हम और हमारे कुछ गरीब घर के साथी सीधा तो रास्ता था नही तो हम लोग खेतों से सीधा रास्ता देखकर स्कूल जाया करते थे, बरसात में तो बहुत ही परेशानी होती थी लेकिन पिता जी तो अकड़ू दिमाग थे उन्हें क्या बोले, पिता जी बोले बेटा 10 वीं की परीक्षा में प्रथम स्थान आये तो साइकिल खरीदेंगे। और प्रथम स्थान की लालच में खूब मन से पढ़ाई करते और स्कूल के आने के बाद गाय बैलों को चराने ले जाना और साथ मे किताब लेकर जाना। ताकि प्रथम श्रेणी में पास हो जाऊं। लेकिन नही हो पाया , परीक्षा के समय ही हमे दस्त व बुखार का आने से सरकारी विद्यालय से 58 प्रतिशत से पास होना।
लेकिन पिता जी अपनी बातों से पीछा नही छुडाएं और उन्होंने एक पुरानी एटलस की साइकिल खरीदी। व उसे बनवाकर, कला पालिस पोतकर नए जैसे दिखने लगी उसे पाकर हम बहुत खुश हुए जैसे आज मेरे घर मे कोई त्योहार हो। लेकिन आज पिता जी से हम बहुत खुश थे सच मे पिता जो चाहते हैं वो कर देते हैं।
और अब 11वीं में प्रवेश लेना है उसके लिए गांव से 18 किलोमीटर दूर तहसील /थाना अमरपाटन में सरकारी उत्कृष्ट विद्यालय में जाना है, तो पिता जी द्वारा चलाकर ले जाना और हम पीछे कॅरियाल में बैठे रहते थे बोलते थे सोना नही बस आधे घंटे से पहुच जाएंगे। क्योंकि मेरे से साइकिल चलाना थोड़ा थोड़ा आता था और रोड नेशनल हाइवे 07 थी आये दिन किसी न किसी की दुर्घटना की खबर आती रहती थी । और 11 वीं में कामर्स समुदाय में प्रवेश मिल गया और कुछ दिनों बाद हम अकेले ही साइकिल से स्कूल जाना चालू कर दिए , अब पिता जी को एहसान होने लगा कि बेटा अब अकेले ही जा सकता है। ऐसे करते करते 12 वीं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की ।
और अब स्नातक की पढ़ाई करना है तो जिला में पिता जी के कॉलेज देखकर आ गए बोले कि अब यहीं पढ़ना है और हमे एक महेश शर्मा जी के यहां कच्चा कमरा मिल गया। जिसका किराया 400/- रुपये था।लेकिन इतने रुपए का इंतजाम बहुत ही कठिन था।
और हम चूल्हे पर ही खाना पकाते ज्यादातर तो रोटी ही बनाते क्योंकि रोटी में सब्जी नही है फिर भी अचार के साथ खा सकते थे ।पिता जी तीन तीन महीने में राशन/अनाज घर से लेकर रख जाते थे। जब जब पिता जी से रुपये मांगते तब मना कर देते थे । तब बहुत गुस्सा आती थी। उन्हें रुपये की अहमियत पता थी उन्हें लगता था कि ज्यादा रुपये दे देंगे तो ये बिगड़ जाएगा। लेकिन उनकी सीख यही रहती थी कि बेटा जो गरीबी में पढ़ता है वह परिवार की परिवरिश व परिस्थितियों को जानता है।और एक अच्छा इंसान बनता है।
और हमने रात्रि की ड्यूटी करके अपनी पढ़ाई करते रहे क्योंकि पिता जी की आर्थिक स्थिति सही नही थी ।
हमने BBA,MBA, B.ED,PGDCA आदि कोर्स किये। और हम यही चाहते हैं किये ऐसे मार्गदर्शक पिता सबको मिले।
और पिता हमेशा घर का मुखिया होता है। चाहे दुःख, सुख ,गरीबी या जो भी परिस्थिति हो उसका सामना बड़ी जिम्मेदारी से निभाना जनता है।
पिता जी को चरण स्पर्श
🙏🙏🙏✍️📖
विनय कुमार दहायत
ग्राम पोस्ट -धौरहरा, तहसील-अमरपाटन जिला -सतना मध्यप्रदेश
पिन कोड-485778
मोबाइल-97136829999
मेल आईडी-vkd2999@gmail.com
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