किताबें कहती हैं....Kitabein Kahti Hain....

*किताबें कहती हैं...*
कोई कहता है हम हलकी हैं,
कोई कहता है हम भारी हैं।
लेकिन हम दोनों में होती हैं।
*किताबे कहती हैं...*
संसार की हर जानकारी,मेरे पास है।
अकसर कुछ नया करने का
हमसे ही बनता सपना है।
जिंदगी व दुनिया में सबसे अच्छा दोस्त आखिर हम ही हैं।
ज्ञान की हम खदान  हैं।
*किताबे कहती हैं...*
लोग हमें पढ़कर महान बन जाते हैं,
जीवन को एक नया मोड़ देकर अच्छा इंसान बना देती हूं।
अतीत में क्या बीता हम सबको बताती हूँ।
वर्तमान में क्या करना है, भविष्य मैं बना देती हूँ।
सबका मैं हिसाब रखती हूँ।
*किताबें कहती हैं...*
कबीर के दोहे में रहती हूँ,
संतों की वाणी में रहती हूँ
बाबा भीमराव अंबेडकर के सविंधान में रहती हूँ।
होती न कोई भी हानि है,
ऐसा कोई प्रश्न नहीं
जिसका मैं जवाब न दे पाऊँ।
*किताबे कहती हैं...*
मंजिल पर पहुंचाती हूँ
वही तो मैं रास्ता हूँ।
लोगों को आत्मसम्मान से जीना सिखाती हूँ।
बड़ों का आदर, सम्मान, व छोटों को प्यार करना और दीन-हीन गरीबों में सदभावना का भाव जगाती हूँ।
*किताबें कहती हैं...*
जाति-पांति का भेद मिटाकर, आपस मे भाईचारा का भाव सिखाती हूँ,
अंधविश्वास, पाखण्ड  के बदले  वैज्ञानिक सोच बनाती हूँ।
आपस मे संगठित होकर एकता की बात सिखाती हूँ।
*किताबें कहती हैं...*
हर जिज्ञासु के मन में
हमको पाने की चाहत है,
हम तो वो सागर हैं, जिसमें
ज्ञान का प्रशांत महासागर है।
*किताबें कहती हैं...*
हम सभी के सुख:दुख में साथ रहती हूँ,
लोग हमें पढ़कर इतिहास की गाथा गाते हैं।
हम बच्चे से युवा जवान व अनुभव वाला सच्चा इंसान बनाती हूँ।
लोग हमें पढ़कर नाती -पोतों को सुन्दर व मार्गदर्शक कहानियां सुनाते हैं।
*किताबें कहती हैं...*
✍️
विनय (कुणाल सिँह दहिया)

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