विधायक श्री चंदीदीन दहायत 1955 [ दाहिया (दहायत ) समाज मध्यप्रदेश ]
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पद्मश्री बाबूलाल दाहिया जी की कलम से
जिनकी अब यादें ही शेष हैं?
मित्रों! अब आजादी के पचहत्तर वर्ष बीत चुके हैं। परन्तु अगर हम 1952 की प्रथम विधान सभा को अपवाद के रूप में छोड़ दें जिसमें हमारे दहायत दाहिया समाज के ही क्रमशः दो बिधान सभा सदस्य हुए थे तो उस के बाद कहीं कोई भी अपने बिधायक एम.पी. नही हुए।
उस विन्ध्य प्रदेश की रीवा विधान सभा में पहले विधायक श्री हेतराम दहायत हुए थे परन्तु दो वर्ष में ही बीमार होकर उनके मृत्यु के पश्चात सीट खाली होगई और फिर 1955 में दूसरे विधायक श्री चंदीदीन दहायत चुन लिए गए थे। परन्तु 1957 के बाद जब प्रथम विधान सभा का कार्यकाल समाप्त होगया तो उसके पश्चात विन्ध्य प्रदेश का भी मध्य भारत और सी.पी. बरार के साथ मध्यप्रदेश नामक नए राज्य में बिलिनी करण हो गया था।
श्री हेतराम जी जहां हमारे पिथौराबाद गांव के समीपी (पतौरा) ग्राम के निवासी थे वहीं श्री चंदीदीन जी उंचेहरा नगर से एक किलो मीटर दूर सतना रोड पर स्थित( पिपरी) नामक गांव के। चित्र में श्री चंदीदीन जी के सिर में लगी गांधी टोपी और उनकी रोबीली मूँछें स्पस्ट उनका परिचय करा रही हैं।
श्री चंदीदीन जी 1969 तक जीवित रहे। पर जब वे विधायक थे तो मुझसे अक्सर कहा करते थे कि " हमारे समाज के कुछ युवक पढ़लिख कर शिक्षक तो बन गए हैं पर मेरी दिली इच्छा है कि आंगें और पढ़ें एवं कोई पुलिस दरोगा ,एसपी तो कोई जज मजिस्ट्रेट आदि भी बने।" परन्तु मध्य प्रदेश बनने पर जब आरक्षण ही समाप्त होगया तो उनकी बहुत सारी इच्छाओं पर पानी सा फिरगया और स्थिति यह है कि आज भी आरक्षण का मुद्दा कमोवेश वही अनसुलझा हुआ है।
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