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अशोक चक्र के लिए बाबासाहब ने बहुत ही परिश्रम किया है ।

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  राष्ट्रध्वज का कलर बनाने के लिए बाबासाहब ने " पेंगाली वेंकैय्या " को चुना था। ...पेंगाली वेंकैय्या को कलर के बारे में जनाकारी थी। ... उनका संवैधानिक चयन बाबासाहब ने किया था। ,.. पेंगाली वेंकैय्या ने ध्वज का कलर तो बनाया लेकिन वो कलर ऊपर निचे थे ... मतलब सफ़ेद रंग सबके ऊपर , फिर ऑरेंज और फिर हरा। ...  बाबासाहब ने सोचा , अगर अशोक चक्र हम रखे तो वो नीले रंग में होना चाहिए , और झंडे के बिच में होना चाहिए  ... ऑरेंज रंग पे " अशोक चक्र " इतना खुल के नहीं दिखेगा। ... बाबासाहब ने सोचा , अगर सफ़ेद रंग को बिच में रखा जाए जो की शांति का प्रतिक है , उसपर अशोक चक्र खुल के भी दिखेगा। .. और शांति के प्रतिक सफ़ेद रंग पे बुद्ध के शांति सन्देश का अशोक चक्र उसका मतलब बहुत गहरा होगा। ...  इसलिए बाबासाहब ने वो कलर ठीक से सेट किये। .. और सफ़ेद रंग बिच में रखा ताकि उसके ऊपर " अशोक चक्र  रखा जाए। ,...  दूसरी तरह से वो रंग गाँधी के कांग्रेस पार्टी के झंडे के कलर हो जाते है। ... बाबासाहब ने जब अशोक चक्र का issue पार्लियामेंट में उठाया तब सबने विरोध किया था। .. गाँधी नेहरू का कहना था क...

शैतान चिल्लाए धर्म खतरे में...

1 जब अंग्रेजों ने नरबलि पर रोक लगाई गई तब शैतान चिल्लाए कि  धर्म खतरे में है!  2 जब अंग्रेजों ने नवविवाहिता का पुरोहितों द्वारा 3 दिन तक शुद्धीकरण प्रथा पर रोक लगाई गई, तब शैतान चिल्लाए धर्म खतरे में है! 3 जब अंग्रेजों ने सती प्रथा पर रोक लगी, तब शैतान जोर जोर से चिल्लाए, धर्म खतरे में है ! 4 जब साहू जी महाराज ने  अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया, तब शैतान चिल्लाए धर्म खतरे में है !  5 जब 1932 में एससी एसटी को प्रतिनिधित्व मिला तब शैतान चिल्लाए, कि धर्म खतरे में है !  6 जब ओबीसी को संविधान के अनुच्छेद 340 के अनुसार प्रतिनिधित्व देने की बात आई तो शैतान चिल्लाए  धर्म खतरे में है ।  7 जब हिंदू कोड बिल आया तब शैतान चिल्लाए,  धर्म खतरे में है!  8 जब अंग्रेजों ने एससी एसटी ओबीसी को प्रतिनिधित्व देने के लिए साइमन कमीशन बनाया तब शैतानों ने चिल्लाया धर्म खतरे में है। 9 जब अन्य पिछड़े वर्गों को प्रतिनिधित्व देने वाली काका कालेलकर कमिशन रिपोर्ट आई तब शैतान चिल्लाए  धर्म खतरे में! 10 आज ओबीसी, एससी, एसटी  समाज अ...

आजकल हर समाज में बच्चों को प्रतिशत की दौड़ में शामिल व अधिक प्रतिशत में प्रोत्साहन स्वरूप प्रतिभा सम्मान ,कम प्रतिशत में बच्चों का अपमान होना उचित है या अनुचित ?

समाज बंधुओं,  मैं कभी कभी यह सोचने पर मजबूर हो जाता हूं कि आजकल हर समाज में बच्चों को प्रतिशत की दौड़ में शामिल कर उनको प्रोत्साहन स्वरूप प्रतिभा सम्मान से नवाजा जा रहा है। इस प्रतिशत की दौड़ में सामाजिक रूप से सम्पन्न, कमजोर, गरीब परिवारों के बच्चे सभी शामिल होते है। इसके अलावा हम उन आर्थिक रूप से गरीब, कमजोर और सरकारी/निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को जो प्रथम श्रेणी धारक है,कुछ सहयोग राशि देकर प्रोत्साहित करते है ताकि वे अपना भविष्य उज्जवल कर सके।  बात सही है लेकिन समाज के बड़े बड़े  भामाशाह,राष्ट्रीय संगठन मेरिट पर बात करते हैं! मेरिट में कौन आता है जिसके पास सुविधाएं है साधन है तथा  संपन्न पारिवारिक पृष्ठ भूमि है !  एक गरीब व्यक्ति, मजदूर तथा पेशेवर काम करता है बड़ी कठिनाई से परिवार का पोषण होता है बच्चा भी पढाई के साथ माता पिता का सहयोग करता है, सरकारी स्कूल में पढ़ता है और सिर्फ  वह उत्तीर्ण भी होता है और कभी असफल भी हो जाता है तो उसे कौन प्रोत्साहित करेगा।  कहते है पांचों उंगलियां समान नहीं होती अतः समाज में ऐसे बच्चे भी है जो पढ़कर भविष्य ...

अगर प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालय बन्द हो गए तो,सबसे बड़ी कीमत कौन चुकाएगा ?

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शिक्षा, शिक्षार्थी, शिक्षक *************** अगर प्राथमिक एवं माध्यमिक ,विद्यालय बंद हो गए तो सबसे बड़ी कीमत कौन चुकाएगा, न वह बच्चा जो प्राइवेट अंग्रेज़ी मीडियम स्कूल में पढ़ता है। न वह परिवार जिसके पास ट्यूशन, कोचिंग और ऑनलाइन संसाधन हैं। सबसे पहले शिक्षा से वंचित वही बच्चा होगा जो समाज की आखिरी पंक्ति में खड़ा होकर पहली बार स्कूल तक पहुँचा था। वह जिसकी पीढ़ी में पहली बार किसी ने किताब छुई थी। वह जो गरीबी से लड़कर स्कूल तक आया था। लेकिन अब स्कूल ही बंद किया जा रहा है। शिक्षा हमारे विकास का पहला और सबसे ज़रूरी कदम होना चाहिए। हमने अपने जनप्रतिनिधियों को , सांसद और विधायक को सदन में इसलिए भेजा था कि वे शिक्षा, स्वास्थ्य और समान अवसर की गारंटी दें। लेकिन हुआ इसका उल्टा। सरकारी स्कूलों की छत से पानी टपकता रहा। हर विषय के लिए शिक्षक नहीं मिले। जरूरी सुविधाएं नहीं दी गईं। और फिर कहा गया — "बच्चे कम हैं", इसलिए स्कूल बंद कर दो। लेकिन किसी ने ये नहीं सोचा कि बच्चे कम क्यों हुए। जब स्कूलों की हालत खराब हो, जब शिक्षकों की भर्ती बंद हो, जब शौचालय में पानी, बिजली, पुस्तकालय क...

Dahiya Dahayat Chetna Srajan Book 2025

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सोनू दहायत सर जी को तहे दिल से आभार जिन्होंने दाहिया समाज को आज के समय की  आवश्यकतानुसार दाहिया दहायत समाज की पहली ईबुक समाज को समर्पित किये हैं । इस किताब की क्वालिटी भी बहुत सुंदर है। और हमारी पहली कविता को भी पृष्ठ संख्या 98 में जगह मिली इसके तहे दिल से साधुवाद। और किताब के सांचोर बात ही अलग है , और समाज के महानुभावों द्वारा किये कठिन परिश्रम व भाग दौड़ को आपने फ़ोटो संकलन भी किये ,इतना डेटा मिल पाना असंभव था लेकिन सोनू सर अपने असम्भव को संभव करके एक किताब में पिरो दिया । वास्तव में अद्भुत लेखन संपादक महोदय जी। सादर नमस्कार 100 में 100 नम्बर आपके लिए ✅ Bfc पब्लिकेशन हाउस को सह्रदय आभार 🎯✍️ *किताबें कहती हैं....* 📖📚 आप इस ईबुक को कैसे पढ़ सकते हैं- *आप लिंक क्लिक करके आगे बढ़ सकते हैं या आपके फोन में प्ले स्टोर में जाना है वहां आपको सर्च ऑप्शन में dahiya dahaayat सर्च करें पहली बुक यही दिखेगी बुक पर क्लिक करें। पासवर्ड फीड करने को कहेगा तो आपको जीमेल का पासवर्ड फीड करना है।Upi ऑप्शन में क्लिक करें ,GPay या Phone pay क्लिक करके 58 रुपये पेमेंट करें। जैसे पेमेंट होगा । उसके बाद पूरी...

अब खुद ही गिर जाओ,जमीं पर..Ab khud hi gir jao jamin par...

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✍️🤔 *अब खुद ही गिर जाओ जमीं पर...  *पत्थर मारने वाला बचपन, मोबाइल मे व्यस्त है।।* *अच्छी थी, पगडंडी अपनी।* *सड़कों पर तो, जाम बहुत है।।* 🙂 *फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो।* *सबके पास, काम बहुत है।।* 🌹 *नहीं जरूरत, बूढ़ों की  अब।* *हर बच्चा, बुद्धिमान बहुत है।।* 🌸 *उजड़ गए, सब बाग बगीचे।* *दो गमलों में, शान बहुत है।।* 🌻 *मट्ठा, दही, नहीं खाते हैं।* *कहते हैं, ज़ुकाम बहुत है।।*🌹 *पीते हैं, जब चाय, तब कहीं।* *कहते हैं, आराम बहुत है।।*🌸 *बंद हो गई, चिट्ठी, पत्री।* *व्हाट्सएप पर, पैगाम बहुत है।।*🌻 *आदी हैं, ए.सी. के इतने।* *कहते बाहर, घाम बहुत है।।*🌹 *झुके-झुके, स्कूली बच्चे।* *बस्तों में, सामान बहुत है।।*🌸 *नही बचे, कोई सम्बन्धी।* *अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है।!*🌻 *सुविधाओं का, ढेर लगा है।* *पर इंसान, परेशान बहुत है।।*♥️🤔

फादर्स डे ( पिताजी दिवस ) पर विशेष...

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 प्रिय पिताजी...🙏 लोग अक्सर पिता जी को अक्सर गलत ठहराते हैं, कि वो ग़ुस्से वाले स्वभाव के है, अकड़ू है, लेकिन वो हमेशा बच्चों के प्रगति व मार्गदर्शन का प्रमुख रास्ता होते हैं। वो हमेशा बच्चों के अच्छे  परिवरिश में अपना रहन-सहन भूल जाते हैं। और बच्चों के उत्कृष्ट भविष्य के लिए हमेशा रात्रि के समय एकांत में सोचते रहते है। वैसे भी हमारा बचपन गांव के देहात में गरीबी में बीता , कुछ पल जो आज भी याद है और हमेशा याद रहेंगे। हमारे पास नए कपड़े नही होते थे, ठंडी में मेरे गांव के समीप मेला लगता था तो पिता जी नए कपड़े लाने के लिए दो या चार  रात दिन मेंले में गन्ना खरीदकर बेंचा करते हैं। और प्राथमिक स्कूल गांव में ही थी लेकिन 6th की पढ़ाई के लिए ग्राम मौहट पैदल ही नदी पार कर जाना होता था। क्योंकि साइकिल नही थी , वो क्या बोलते थे कि जो पैदल स्कूल जाता है उसे ज्यादा भूंख लगती है और हमेशा स्वास्थ्य रहता है। और 9th और 10 th की पढ़ाई के लिए तो ग्राम करही में  8 किलोमीटर पैदल जाना होता था तो हम और हमारे कुछ गरीब घर के साथी सीधा तो रास्ता था नही तो हम लोग खेतों से सीधा रास्ता देखकर स्कू...