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मैं जल्दी में निकलती हूँ... Main Jaldi Men Nikalti Hun...

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   मैं जल्दी में निकलती हूँ... रोज़ सुबह घर से, आधे रास्ते में याद आता है सिलेंडर नीचे से बंद किया की नहीं उलझन में पड़ जाती हूँ । कहीं गीजर खुला तो नहीं रह गया कितनी ही जल्दी उठूं और तेज़ी से निपटाऊं काम। मैं जल्दी में निकलती हूँ... ऑफ़िस पहुँचने में देर हो जाती है गुस्साई हँसी के साथ बैठती हूँ अपनी सीट पर, नाख़ूनों में फँसे आटे को निकालते हुए। मैं जल्दी में निकलती हूँ... काम करती हूँ पूरी लगन से। पूछना नहीं भूलतीं बच्चों का हाल सास की दवाई के बारे में ससुर के स्वास्थ्य का हाल मेरे पास नहीं होता वक़्त मैं जल्दी-जल्दी निपटाती हूँ काम, ताकि समय से काम ख़त्म करके घर के लिए निकल सकूं। मैं जल्दी में निकलती हूँ... दिमाग़ में होती है सामान की लिस्ट जो लेते हुए जाना है घर दवाइयाँ, दूध, फल, राशन ऑफ़िस से निकलने को होती ही हैं कि तय हो जाती है कोई मीटिंग। मैं जल्दी में निकलती हूँ... बच्चों का प्रेम जल्दी आने की रुलाई बन फूटती है वाशरूम में मुँह धोकर, लेकर गहरी साँस शामिल होती हूँ मीटिंग में। नज़र लगातार होती है घड़ी पर और दिमाग में होती है बच्चों की गुस्से वाली सूरत। मैं जल्दी में निकलती ...