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कल के दौर और आज के बदलते दौर में असमानता

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कल का दौर ..... (सयुंक्त परिवार ) परिवार में यदि किसी नए बच्चे का जन्म होता तो सबसे पहले खुशी दादा/दादी को होना। गाँव में किसी के यहाँ बच्चों की शादियां होना तो उस शादी में घर के सदस्य व रिश्तेदार के अलावा पूरे गाँव का शामिल होना। घर में यदि कोई आ जाये चाहे हो वो परिचित हो या या अपरचित उसको उसको शिष्टाचारयुक्त आदर सत्कार करना, पहले परिवार में घर में एक ही टेलीफोन होता था और सब फोन की घंटी बजने की आवाज सुनने को आतुर रहते थे। गाँव में यदि घूमने भी यदि निकले हैं तो सतर्क रहते थे की कही बड़े पिताजी ,बड़े भैया न देख लें यदि देख भी लिए तो मिस्टर इंडिया बनकर गायब और उनके घर पहुँचने से पहले घर में किताबे खोलना ताकि उनको लगे की हम कितने मनमुघद होकर पढ़ रहे हैं। एक समय का दौर था जब गाँवों में किसी एक मोहल्ले के एक घर में टेलीविजन हुआ करता था , और हम विद्द्यालय की छुट्टी होने या फिर सप्ताह के रविवार को इन्तजार रहता था की कब और कितना जल्दी रविवार आ जाये और हम अपना पसंदीदा धारावाहिक जैसे शक्तिमान ,आर्यमान ,अलिफ़ लैला , शाकालाका बूम बूम,चित्रहार आदि , देखने को बेसब्री से इन्तजार रहता थ...